हम अपने चारों ओर की सृष्टि को देखकर
पाते हैं कि कुछ वस्तुओं में समय • साथ-साथ उनकी स्थिति में परिवर्तन होता
है, जबकि कुछ अपने स्थान पर ही
स्थित रहती हैं। उदाहरणस्वरुप हमारे सामने
से जाती रेलगाड़ी, मोटर आदि की थति में समय के साथ परिवर्तन होता है, जबकि मेज पर पड़ी किताब आदि में रिवर्तन नहीं होता है। इससे पता चलता
है कि हमारे चारों ओर स्थित वस्तुयें या नो स्थिर हैं या गतिमान है। परन्तु वस्तु
की यह स्थिरता अथवा गति हमारे सापेक्ष हैं क्योंकि हो सकता है
जो वस्तुयें हमें
गति में दिखायी देती हैं, किसी और दृष्टा की टेस्ट में वे स्थिर
हों। जैसे हमारे सामने से एक रेलगाड़ी जा रही है तो हमारी अपेक्षा ६ रेलगाड़ी की
स्थिति में समय के साथ परिवर्तन होता है, इसीलिये हम कहते हैं कि लगाडी गति में
है, परन्तु उसमें बैठे यात्री की अपेक्षा से गाड़ी की स्थिति में समय के
साथ कोई परिवर्तन नहीं होता, अतः उस यात्री की अपेक्षा रेल स्थिर
है। अतः स्थिरता अथवा गति की अवस्थाओं का वर्णन सापेक्ष (relative) होता है।
गति के प्रकार
मख्यतः गति को तीन भागों में बांटा जा
सकता है
1. स्थानान्तरीय गति (Translatorymotion)-
जब कोई वस्तु एक सीधी रेखा में गतिं
करती है तो ऐसी गति को स्थानान्तरीय गति कहते हैं। स्थानान्तरीय गति को रेखीय गति
भी कहा जाता है। जैसे सीधी पटरियों पर चलती रेलगाड़ी। स्थानान्तरीय गति में मूल
बिंदू से दायीं ओर की दूरी को धनात्मक और बायीं ओर की दूरी को ऋणात्मक रूप में
व्यक्त किया जाता है।
2. घूर्णन गति (Rotatory
motion)- जब कोई पिण्ड किसी अक्ष के परितः घूमता
है तो ऐसी गति को घूर्णन गति कहते हैं। जैसे पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना।।
3. कम्पनीय गति (Vibratory
motion)- जब कोई किसी निश्चित बिन्दु | के इधर-उधर गति करती है तो उसे कम्पनीय गति कहते हैं। जैसे घड़ी की
लोलक का अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर दोलन करना।
दूरी (Distance)- किसी
दिये गये समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किये गये मार्ग की लम्बाई को दूरी कहते
हैं। यह एक अदिश राशि है जो सदैव धनात्मक होती है। इसका मात्रक मीटर है।
विस्थापन (Displacement)- किसी विशेष दिशा में गतिशील वस्तु की स्थिति परिवर्तन को उसका
विस्थापन कहते हैं। विस्थापन एक सदिश राशि है।
ज्ञातव्य है कि दूरी व विस्थापन में
मुख्य अन्तर यह है कि वस्तु का विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक व शून्य कुछ भी हो सकता है, परन्तु दूरी सदैव धनात्मक होती |
है। जैसे हम किसी पत्थर को पृथ्वी से
पांच मीटर की ऊंचाई तक फेंकते हैं तथा
पत्थर पुनः अपने स्थान पर वापस लौट आता
है। इस दशा में पत्थर का विस्थापन | तो शून्य होगा, परन्तु उसके द्वारा चली कुल दूरी दस मीटर होगी। |
चाल (Speed)- किसी गतिमान वस्तु के स्थिति परिवर्तन
की दर अर्थातू एक सेकेण्ड में चली गई दूरी को उस वस्तु की चाल कहते हैं।
चाल = चली गई दूरी/समय ।
वस्तु की चाल एक अदिश राशि है व सदैव
धनात्मक होती है। इसका SI मात्रक मीटर/सेकेण्ड है।
औसत चाल- किसी वस्तु द्वारा इकाई समय
में तय की गई दूरी को औसत चाल कहते हैं।
औसत चाल = कुल तय की गई दूरी/ दूरी को
तय करने में लगा समय ।
वेग (Velocity)- गतिशील
वस्तु के विस्थापन की दर अर्थात् एक सेकेण्ड में हुये विस्थापन को वस्तु का वेग
कहते हैं। * वेग = विस्थापन/समय । | वेग एक सदिश राशि है। इसका SI मात्रक मीटर/सेकेण्ड होता है। वस्तु का वेग धनात्मक व ऋणात्मक दोनों
हो सकता है जबकि चाल सदैव धनात्मक होती है। वेग बताते समय उसकी दिशा भी अवश्य बताई
जाती है। जब कोई वस्तु एक वृत्तीय मार्ग पर एक समान चाल (Uniform Speed) से चल रही हो तो उसका वेग हर बिन्दु पर बदल जाता है, क्योंकि वैग की दिशा बदल रही है। वृत्त के किसी बिन्दु पर खींची गई
स्पर्श रेखा की दिशा ही उस बिन्दु पर वेग की दिशा होती है।
आपेक्षिक वेग (Relative
Velocity)- जब दो वस्तु गतिमान हो, तो एक की अपेक्षा दूसरे का वेग ‘आपेक्षिक वेग' कहलाता है। वस्तु A का B के सापेक्ष वेग वह वेग है, जिससे B से देखने पर वस्तु A चलती हुई प्रतीत होती है।
उदाहरण- (1) माना कि दो साइकिल सवार क्रमशः Va और Vbके वेग से चल रहे हैं।
(i) समान दिशा में- जब दोनों सवार एक ही दिशा में गतिमान हों, ऐसी स्थिति में पहले सवार की अपेक्षा दूसरे सवार का वेग ।
Vba = Vb-Va
तथा, दूसरे सवार की अपेक्षा पहले सवार का वेग
Vab= Va- Vb
(i) विपरीत दिशा- जब दोनों सवार एक दूसरे के विपरीत दिशा में गतिमान हों, ऐसी स्थिति में । पहले सवार की अपेक्षा दूसरे सवार का वेग
Vba = Vb-(-Va)
Vab=Vb+ Va
तथा, दूसरे सवार की अपेक्षा पहले सवार का
वेग
Vab = Va -(-Vb)
Vab=Va + Vb
(2) यदि दो गतिमान वस्तुओं के वेग एक सीधी
रेखा में न होकर किसी कोण पर झुके हों, तो एक वस्तु की अपेक्षा दूसरी वस्तु का
वेग उनके वेगों के सदिश अन्तर के बराबर होता है।
माना कि वस्तु A का वेग Va के साथ वस्तु B का वेग Vb 0 कोण बनाता है।
अतः A के प्रति B का आपेक्षिक वेग
V ba= Vb +(-va)
Vba= Vb - va
b के प्रति A का आपेक्षिक वेग
V,ab = V,a + (-Vb) या , = V,ab - vb
अतः , Vab=vba
V ba= Vb +(-va)
Vba= Vb - va
b के प्रति A का आपेक्षिक वेग
V,ab = V,a + (-Vb) या , = V,ab - vb
अतः , Vab=vba
कोणीय वेग (Angular Velocity)- समय के साथ ध्रुवांतर (radieats
vector) द्वारा घूमे गए कोण की दर को कोणीय वेग
कहते है। इसका संकेत @ है। यदि समय t में ध्रुवोत्तर कोण 8 से घूम गया हो, तो
0 = 8/t रेडियन/सेकेंड (s..i.)
कोणीय वेग तथा रेखीय वेग में सम्बन्ध- मान लें कि । समय में कोई
वस्तु P से Q तक चलती है, और यदि PQ=S हो,
तो
वस्तु का रेखीय चाल V = S/t
@ = 0/t, जब 0रेडियन में मापा जाता है तो
@ = 0/t, जब 0रेडियन में मापा जाता है तो
@ = S/r
S/r/t = _1/r=S/t=V/r
V = r x @
अर्थातू रेखीय वेग = त्रिज्या x कोणीय वेग।
अर्थातू रेखीय वेग = त्रिज्या x कोणीय वेग।
त्वरण (Acceleration)- यह आवश्यक नहीं है कि जो वस्तु गतिमान है, उसका वेग सदैव एक समान ही रहे। यह भी हो सकता है कि उसका व भिन्न-भिन्न समयों पर भिन्न-भिन्न रहे। यदि समय के साथ वस्तु का वेग बढ़ता या घटता है तो ऐसी गति को त्वरित गति कहते हैं तथा यह बताने के लिये कि वेग में किस दर से परिवर्तन होता है, हम एक नई राशि ‘त्वरण' का प्रयोग करत है। अतः किसी गतिमान वस्तु के वेग में प्रति एकांक समयान्तराल में होने वाले परिवर्तन को उस वस्तु का त्वरण कहते हैं। अर्थात वेग परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। यदि वेग बढ़ता है तो त्वरण धनात्मक माना जाता है। आर घटता है तो त्वरण ऋणात्मक माना जाता है।
यदि किसी वस्तु के वेग में बराबर
समान्यतरालों में बराबर परिवर्तन हो रहा है तो उसका त्वरण ‘एक समान' कहलाता है।
त्वरण = वेग में परिवर्तन/समयान्तराल
त्वरण एक सदिश राशि है। यदि किसी वस्तु का वेग t1, समय पर u1, है, तथा 1, समय पर u1, है तथा
t2 समय u2
त्वरण = वेग में परिवर्तन/समयान्तराल
त्वरण एक सदिश राशि है। यदि किसी वस्तु का वेग t1, समय पर u1, है, तथा 1, समय पर u1, है तथा
t2 समय u2
|त्वरण =u2=u1/t2-t1
यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे । मन्दन (retardation or deceleration) कहते हैं। इस प्रकार मंदन वेग घटने की दर होता है।
यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे । मन्दन (retardation or deceleration) कहते हैं। इस प्रकार मंदन वेग घटने की दर होता है।
M.K.S. पद्धति में इसका मात्रक मीटर/सेकेण्ड’2 होता है। |
नियत त्वरण वाली गति के समीकरण- यदि कोई वस्तु एक नियत त्वरण से एक ऋजुरेखा में चल रही हो तो उसके वेग, विस्थापन, समय तथा त्वरण के पारस्परिक संबंधों को समीकरणों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। ये समीकरण ‘गति के समीकरण' (Equations of motion) कहलाते हैं।
नियत त्वरण वाली गति के समीकरण- यदि कोई वस्तु एक नियत त्वरण से एक ऋजुरेखा में चल रही हो तो उसके वेग, विस्थापन, समय तथा त्वरण के पारस्परिक संबंधों को समीकरणों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। ये समीकरण ‘गति के समीकरण' (Equations of motion) कहलाते हैं।
माना कि कोई वस्तु वेग u से चलना
प्रारम्भ करती है तथा उस पर एक ‘नियत' त्वरण a आरोपित है।
यदि । यदि t सेकण्ड में वस्तु s दूरी तय कर लेती है तथा उसका वेग v हो जाता है। तब u, a, t, s और y के संबंधों को निम्न समीकरणों से व्यक्त किया जा सकता है
(i) v = u+at
(ii) s = ut +1/2 at2
2
(iii) v2 = u2 + 2as
वस्तु द्वारा वें सेकेण्ड में चली हुई दूरी
S, =u+1/2 a (2t-1) होती है।
वस्तु द्वारा वें सेकेण्ड में चली हुई दूरी
S, =u+1/2 a (2t-1) होती है।
उपरोक्त समीकरण तभी लागू होती है जब
त्वरण नियत (constant) हो तथा गति सरल रेखा में हो।।
गुरुत्वीय गति के समीकरण (Equation of motion un under gravity)
पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। इस खिंचाव के की ओर स्वतंत्रतापूर्वक गिरती हुई वस्तुओं में एक नियत त्वरण acceleration) आरोपित हो जाता है, जिसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं त्वरण को g से प्रदर्शित करते हैं। इसका मान लगभग 9.8 मीटर/सेकेण्ड, | पृथ्वी की ओर गिरती हुई अथवा पृथ्वी के ऊपर की ओर जाती हई । गति को ‘गुरूत्वीय गति' कहते हैं। पृथ्वी की ओर गिरती हुई वस्तुओं के लि का समीकरण निम्न हैं
पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। इस खिंचाव के की ओर स्वतंत्रतापूर्वक गिरती हुई वस्तुओं में एक नियत त्वरण acceleration) आरोपित हो जाता है, जिसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं त्वरण को g से प्रदर्शित करते हैं। इसका मान लगभग 9.8 मीटर/सेकेण्ड, | पृथ्वी की ओर गिरती हुई अथवा पृथ्वी के ऊपर की ओर जाती हई । गति को ‘गुरूत्वीय गति' कहते हैं। पृथ्वी की ओर गिरती हुई वस्तुओं के लि का समीकरण निम्न हैं
(i) V = u + gt
(i) h = ut +1/2 gt2
(ii)v2 = u’2 +2gh |
यदि कोई वस्तु पृथ्वी से ऊपर की ओर फेंकी जाये तो उक्त समीकरणों में है के स्थान पर -g रख देते हैं।
(ii)v2 = u’2 +2gh |
यदि कोई वस्तु पृथ्वी से ऊपर की ओर फेंकी जाये तो उक्त समीकरणों में है के स्थान पर -g रख देते हैं।
समरूप वृत्तीय गति- जब कोई कण किसी
वृत्ताकार मार्ग में समरूप चाल से चलता है,
तो उसकी गति समरूप वृत्तीय गति कहलाती
है। no(5)
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