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ala ud deen ki arthik niti ka baran 1290-1320

                  आर्थिक सुधार
       अलाउद्दीन को आर्थिक सुधारों की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि जो अपने साम्राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए एवं निरन्तर हो रहे संगत के आक्रमणों के कारण एक विशाल सेना की आवश्यकता थी। फरिश्ता के अनुसा। न सुल्तान के पास लगभग 50000 दास थे जिन पर अत्यधिक खर्च होता था। इन तमाम खर्च को दृष्टि में रखते हुए अलाउद्दीन ने एक नई आर्थिक नीति का निर्माण किया अलाउद्दीन के आर्थिक सुधारों में की भूमिका महत्वपूर्ण थीअलाउद्दीन खिली सेना ।
ala ud deen ki arthik niti ka baran 1290-1320
ala ud deen ki arthik niti ka baran 1290-1320

        की आर्थिक नीति के विषय में हमें व्यापक जानकारी जियाउद्दीन बरनी की की
तारीखेफिरोजशाहीसे मिलती है। अलाउद्दीन के
आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत मूल नियंत्रण के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी अमीर खुसरो की पुस्तक 'खजाइनुल-
इब्नबतूता की पुस्तक रेहलाएवं इसामी की पुस्तक फुलहउस-सलातीन' से की मिलती है।
अलाउद्दीन का मूल्य नियंत्रण केवल दिल्ली में लागू था या फिर पूरी सतता
में, यह प्रश्न विवादास्पद है। मोरलैण्ड एवं काफी केएसने नियंत्रण का

     लाल मूल्य केवल दिल्ली में लागू होने की बात कही है, परन्तु प्रो. बनारसी प्रसाद सक्सेना ने इसे
मत का खण्डन किया है। अलाउद्दीन के बाजार व्यवस्था के पीछे कारणों को लेकर
इतिहासकारों में मतभेद है। अलाउदीन के समकालीन इतिहासकारों ने उसके ।
व्यवस्था के बारे में जो उल्लेख कियाउनमें कुछ प्रमुख निम्न्लिखित है के 

जियाउद्दीन बरनी 
 इन सुधारो को क्रिअब्यन्न
पीछे मुलभूत उध्येस्य मंगोलों के भीसड अकर्मण का मुक़ाबला करने के लिए एक बिशाल और शक्तिशाली
सेना तैयार करना था।"
,

अमीर खुसरो- "सुल्तान ने इन सुधारों को जनकल्याण की भावना से लागू किया"
अलाउद्दीन ने एक अधिनियम द्वारा दैनिक उपयोग की वस्तुओं का मूल्य
निश्चित कर दिया था। कुछ महत्वपूर्ण अनाजों का मूल्य
इस प्रकार था- गेहूं .5 जीतल प्रति मनचावल 5 जीतल प्रति मन, जी 4 जीतल प्रति मन, उड़द 5 जीतल
प्रति मनमक्खन या घी 1 जीतल प्रति 22 किलो। मूल्यों की स्थिरता अलाउद्दीन
की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। उसने खाद्यान्नों की बिक्री हेतु शहनाएमंडीनामक
बाजार की स्थापना की थी। प्राकृतिक विपदा से बचने के लिए अलाउद्दीन ने
'शासकीय अन्न भण्डारोंकी व्यवस्था की थी। अपनी 'राशन व्यवस्था' के
अन्तर्गत अनाज को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए सुल्तान ने दोआब क्षेत्र
से लगान अनाज के रूप में वसूल किया पर पूर्वी राजस्थान के झाइन क्षेत्र से आधी
मालगुजारी अनाज में और आधी नकद रूप में वसूली
जाती थी। अकाल या बाढ़
        के समय अलाउद्दीन प्रत्येक घर को प्रति आधा मन अनाज देता था। राशनिंग
व्यवस्था अलाउद्दीन की नवीन सोच थी। मलिक-मकबूल को अलाउद्दीन ने खाद्यान्न
या अन्न बाजार का शहना-ए-मंडी' नियुक्त किया था।
सराय-ए-अदलऐसा बाजार होता था जहां पर वस्त्रशक्कर, जड़ी बूटी,
मेवा, दीपक जलाने का तेल एवं अन्य निर्मित वस्तुएं बिकने के लिए आती थी।

सराय-अदल

    विशेष रूप से सरकारी धन से सहायता प्राप्त बाजार था।
सरायए-अदल' का निर्माण बदायूं द्वार के समीप एक बड़े मैदान में किया गया।
था। इस बाजार में एक टंके से लेकर 10000 टंके मूल्य की वस्तुएं बिकने के
आती थीअलाउद्दीन ने कपड़े का व्यापार करने वाले व्यापारी को खाद्यान्न
 व्यापारियों की तुलना में अधिक से अधिक प्रोत्साहन दिया। दिल्लीः
में आकार ब्योपार करने बाले प्रतेक ब्योपारी
को   दीवान-ए-रियासत में

नाम लिखवाना पड़ता था अलाउद्दीन के बाजार नियन्त्रण की पूरी व्यवस्था।
का 'दीवान--' नाम का था। उसके नीचे काम संचालन एरिया सत अधिकारी करता
करने वाले कर्मचारी वस्तुओं के क्रयविक्रय एवं व्यवस्था का निरीक्षण करते थे।
प्रत्येक बाजार का अधीक्षक जिसे शहना-ए-मंडीकहा जाता था, बाजार का उच्च
अधिकारी होता था। उसके अधीन बरीद' होते थे, जो बाजार के अन्दर घूम कर बाजार
का निरीक्षण करते थे। बरीद के नीचे मुनहियान' या गुप्तचर कार्य करते थे। अधिकारियों
का क्रम इस प्रकार था- दीवान-एरियासतशहना-एमंडी, बीद और मुनहियान। :

        अलाउद्दीन ने मलिक याकूब को 'दीवान-एरियासत' नियुक्त किया था।
अलाउद्दीन ने : परवान-नवीस' नामक अधिकारी की नियुक्ति की थी। इसका कार्य होता था- तस्बीहस .
, कंजमावरीसुनहरी जरीदेवगिरि रेशमखुले दिल्ली एवं कमरबंद जैसी वस्तुओं
से बेचने के लिए परवाना (परमिटजारी करना।
घोड़ों, दासों एवं मवेशियों के बाजार में मुख्यतः चार नियम लागू थे- . किस्म
अनुसार मूल्य का निर्धारण, 2 व्यापारियों एवं पूंजीपतियों का बहिष्कार. दलाली ट
करने वाले लोगों पर कठोर अंकुश और 4. सुल्तान द्वारा बारबार जांच पड़ताल।
मूल्य नियंत्रण को सफल बनाने में अधिकारीकी भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
एवं नाजिर' (नाप-तौल खिलजी वंश के सुल्तान काल शासक

1290-1296 ई.जलालुद्दीन खिलजी
1296-1316 ई.अलाउद्दीन खिलजी

1316 ई.शिहाबुद्दीन उमर कुछ
.1320  नासिरुद्दीन खुशरवशाल ।
1316-1320. मुबारक खिलजी

https://haidriinform.blogspot.com/2018/06/ala-ud-deen-ki-raajsv-aur-kar-byobstha.html

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