प्रशासनिक सुधार
अपने पूर्वकालीन सुल्तानों की तरह अलाउद्दीन के पास भी कार्यपालिका
व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका की सर्वोच्च शक्तियां विद्यमान थी।
वह अपने
को धरती पर ईश्वर का नायक या खलीफा होने का दावा करता था तथा उसने अपनेको हमेशा उलेमा के आदेशों से अलग रखा। यह प्रशासन के केन्द्रीकरण पर विश्वास उसने प्रान्तों के सूबेदार तथा अन्य
मंत्रीगण बरनी के अनुसार एक बुद्धिमान वजीर के बिना राजत्व व्यर्थ
है"
तथा 'सल्तान के लिए एक बुद्धिमान वजीर से बढ़कर अभियान और यश का
दूसरा स्रोत नहीं है और हो भी नहीं सकता ”
मंत्रीगण
अलाउद्दीन को सिर्फ सलाह
मंत्रीगण
अलाउद्दीन को सिर्फ सलाह
देते व राज्य के दैनिक कार्य को संभालते थे। अलाउद्दीन के समय में 4
महत्वपूर्ण
मंत्री थे जो ऐसे 4 स्तम्भ के समान थे जिन पर
प्रशासन रूपी भवन टिका हुआ था ये मंत्रीऔर सम्बंधित
भिभाग निम्न्लिखित प्रकार के थे
ये मंत्री एवं संबंधित विभाग
निम्न प्रकार थे
1. दीवान-ए-वजारत- मुख्यमंत्री को वजीर' कहा जाता था। यह सर्वाधिक
शक्तिशाली मंत्री होता था। अलाउद्दीन के समय में वजीर का महत्वपूर्ण
विभाग होता
था। वित्त के अतिरिक्त उसे सैनिक अभियान के समय शाही सेनाओं का नेतृत्व
भी करअलाउद्दीन के शासन काल में ख्वाजा खातिर, ताजुद्दीन
काफूर, नुसरत खां आदि वजीर के पद पर कार्य किये थे। व सैन्य
2. दीवान-ए-आरिज या अर्जआरिज-ए-मुमालिक युद्धमंत्री मंत्री
होता था। यह वजीर के बाद दूसरा महत्वपूर्ण मंत्री होता था। इसके
मुख्य कार्यो
सैनिकों की भर्ती करना, उन्हें वेतन बांटनासेना की दक्षता एवं
साज-सज्जा की
देखभाल करना, युद्ध के समय सेनापति के साथ युद्ध
क्षेत्र में जाना आदि था।
अलाउद्दीन के शासन काल में मलिक नासिरुद्दीन मुल्क सिराजुद्दीन आरिज-ए-मुमालिक
के पद पर था। उसका उपाधिकारी ख्वाजा हाजी नायब आरिज था। अलाउद्दीन
अपने सैनिकों के साथ सहदयता की नीति अपनाया।
3. दीवान-ए-इंशा- यह राज्य का तीसरा
महत्वपूर्ण मंत्रालय होता था।
जिसका प्रधान दबीर-ए-खास था। उसका महत्त्वपूर्ण कार्य शाही
उद्घोषणाओं एवं
पत्रों का प्रारूप तैयार करना तथा प्रांतपतियों एवं स्थानीय
अधिकारियों से पत्र
व्यवहार करना होता
था। इसके सहायक सचिव को दबीर' कहा जाता था। दबीर
के प्रमुख को 'दबीर-एमुमलिकात' या दबीर-एखास कहा जाता था।
4. दीवान-एरसालत- यह राज्य का चौथा मंत्री होता था। इसका सम्बन्ध
मुख्यतः विदेश विभाग एवं कूटनीति पत्र व्यवहार से होता था। यह पड़ोसी राज्यों
को भेजे जाने वाले पत्रों का प्रारूप तैयार करता था और साथ ही
विदेशों से आये।
राजदूतों से नजदीक का सम्पर्क बनाये रखता था। कुछ
इतिहासकारों के अनुसार। यह धर्म से सम्बन्धित विभाग था।
दीवान-ए-रियासत- आर्थिक मामलों से सम्बन्धित इस नये विभाग की
स्थापना।
अलाउद्दीन खिलजी ने की थी। दीवान-एरियासत व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण रखता था।
अलाउद्दीन द्वारा स्थापित दो नये विभाग
(1) दीवान-ए-मुस्तखराज।
(2) दीवान-ए-रियासत।
अलाउद्दीन ने बाजार व्यवस्था के कुशल संचालन हेतु कुछ नये पदों को
सृजित किया
(1)
दीवान-ए-रियासत- यह व्यापरी वर्ग पर नियंत्रण रखता था।
(2) शहना-ए-मंडी- यह बाजार का दरोगा होता था।
(3) मुहसिब- जनसाधारण के आचरण का रक्षक एवं माप तौल का
निरीक्षण करता था। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अधिकारी सचिव होते थे। राज महल के कार्यों की देखरेख करने वाला मुख्य अधिकारी
वकीलए-दर होता था। सुल्तान के अंगरक्षकों के मुखिया को सरजानदार कहा जाता था। इनके अतिरिक्त राजमहल
के कुछ अन्य अधिकारी अमीर-ए- आशूर, ‘शहना-ए-पील, ‘अमीर-एशिकार। ,
‘शराबदार, ‘मुहरदार' आदि होते थे।
न्याय प्रशासन- न्याय का उच्च स्रोत एवं उच्चतम अदालत सुल्तान स्वयं होता
न्याय प्रशासन- न्याय का उच्च स्रोत एवं उच्चतम अदालत सुल्तान स्वयं होता
था। सुल्तान के बाद सद्र-ए-जहां’ या काजीउल-कुजात’ होता था, जिसके नीचे 'नायब काजी’ या ‘अदलकार्य
करता था जिनकी सहायता मुफ्ती’ करते थे।
‘अमीर-ए-दाद' नाम का अधिकारी दरबार में ऐसे
प्रभावशाली व्यक्ति को प्रस्तत
करता था जिस पर काजियों का नियंत्रण नहीं होता था।
पुलिस एवं गुप्तचर अलाउद्दीन ने अपने शासन काल में पुलिस एवं गुप्तचर
विभाग को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। कोतवाल पुलिस विभाग का
प्रभाव
अधिकारी होता था। पुलिस विभाग को और अधिक सुधारने के लिए अलाउद्दीन
ने एक नये पद ‘दीवान-एरियासत' का गठन किया जो व्यापारी वर्ग पर
नियंत्रण
स्थापित शहना' व दंडाधिकारी’ भी पुलिस विभाग से सम्बन्धित अधिकारी
करता था। ' थे। ‘मुहसिब सेंसर अधिकारी होता था जो जन
सामान्य के आचार की रक्षा एवं
देखभाल करता थाअलाउद्दीन द्वारा स्थापित गुप्तचर विभाग का प्रमुख
अधिकारी
'बरीद-ए मालिक' होता था। उसके नियंत्रण में उनके बरीद
(संदिह वाहक)
करते थे। बरीद के अतिरिक्त अन्य सूचनादाता को मुन्ही' कहा जाता था। मुन्हीं लोगों
के घरों में प्रवेश करके गौण अपराधों को रोकते थे।
मुख्यतः इन्हीं अधिकारियों को
अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण की सफलता का श्रेय जाता है।
डाक पद्धति- अलाउद्दीन द्वारा स्थापित डाक चौकियों कुशल
पर घुड़सवारों एवं लिपिकों को नियुक्त किया जाता था, जो
राज्य भर का समाचार पहुंचाते थे।
विद्रोहों एवं युद्ध अभियानों के बारे में सूचना शीघ्रता से मिल जाती
थी।
सैनिक प्रबन्ध- अलाउद्दीन खिलजी ने आन्तरिक विद्रोहों को दबाने,
वार
आक्रमणों का सफलतापूर्वक
सामना करने एवं साम्राज्य विस्तार हेतु एक विशाल
सुदृढ़ एवं स्थायी सेना का गठन किया। उसने घोड़ों को दागने एवं सैनिकों
के हुलिया
लिखे जाने के विषय में नवीनतम् नियम बनाये। स्थायी सेना को गठित करने
वाला अलाउद्दीन पहला सुल्तान था। उसने सेना का केन्द्रीकरण किया और साथ ही
सैनिकों की सीधी भरती एवं नकद वेतन देने की प्रथा को प्रारम्भ किया।
अमीर।
खुसरो के वर्णन के आधार पर ‘तुमनदस हजार
सैनिकों की टुकड़ी को कहा जाता।
था। अलाउद्दीन की सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक एवं हाथी सैनिक थे। इनमें
घुड़सवार सैनिक सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण थे। दीवानए-आरिज प्रत्येक
सैनिक की
नामावली एवं हुलिया रखता था। फरिश्ता के अनुसार अलाउद्दीन के पास लगभग
4 लाख 75 हजार सुसज्जित एवं वर्दीधारी सैनिक थे। भलीभांति जांच परख
कर
भरती किये जाने वाले सैनिक को मुग्त्तव’ कहा जाता था।
‘एक अस्पाएक घोड़े। वाले सैनिक) सैनिक को प्रति वर्ष 234 टंका वेतन मिलता था तथा दो
अस्या
को प्रतिवर्ष 378 टंका वेतन के रूप में मिलता था।
प्रान्तीय प्रशासन- बरनी के अनुसार अलाउद्दीन के साम्राज्य
में प्रांतों की संख्या ग्यारह थी- 1. गुजरात2. मुल्तान3. दिपालपुर4. समाना और सलाम
5. धार और उज्जैन. झाइन7. चित्तौड़8. चंदेरी9. बदायूं (कटेहरी1
अवध और 11. कड़ा।
प्रतपति एक प्रकार का ल सुतान था। प्रतपति दरबार लगाता, न्याय करता तथा ।
प्रशासन संभालता था। मध्यकालीन भारतीय इतिहासकार प्रांतपति के लिए
वलीया
मुक्ता' शब्द का प्रयोग करते है जो ‘अक्ताका
अधिकारी होता था। ये पद वंशानुगत
नही थे, सुतान जब चाहे उन्हें उनके पद से हटा सकता था तथा उन्हें स्थानान्तरित
कर
सकता था। अलाउद्दीन के समय में अनेक अधीनस्थ शासक , जैसे- देवगिरि, तेलंगाना
इत्यादि के शासक। ये वली या मुक्ता की अपेक्षा अधिक स्वतंत्र थे
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