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ala ud deen devgiri history south vijay 1307-08

                     देवगिरि (1307-08 ई.)- 
शासक बनने के बाद अलाउद्दीन द्वारा ई.
1296  में देवगिरि के विरुद्ध किये गये अभियान की सफलता पर वहां के शासक रामचन्द्रदेव ने प्रति वर्ष एलिचपुर की आय भेजने का
वादा किया था पर रामचन्द्र देव केपुत्र शंकर देव सिंहन देवके हस्तक्षेप से वार्षिक कर का भुगतान रोक दिया गया । में अतः नाइब मलिक कार के नेतृत्व में एक सेना को देवगिरि पर धावा बोलने के लिए भेजा गया।रास्ते में राजा कर्ण को युद्ध में परास्त कर काफूर ने उसकी पुत्री से देवल देवी,
   
ala ud deen devgiri history south vijay  1307-08
ala ud deen devgiri history south vijay  1307-08 



 
            जो कमला देवी एवं कर्ण की पुत्री थीको दिल्ली भेज दिया जहां पर
इसका विवाह खिल खां से कर दिया गया। रास्ते भर लूट पाटकरता हुआ काफूर।
देवगिरि पहुंचा और पहुंचते ही उसने देवगिरि पर आक्रमण कर दिया। भयानकअपार ,
टपाट के बाद रामचन्द्र देव ने आत्मसमर्पण कर दिया। काफूर ने सम्पत्ति
 राजा वापस के कासारेहाथियों एवं रामचन्द्र देव के साथ दिल्ली आया। रामचन्द्र ।
सुल्तान के समक्ष उदारता काप्रस्तुत होने पर सुल्तान ने उसके साथ व्यवहार करते
हुए राय रायान की उपाधि प्रदान की। उसे सुल्तान ने गुजरात की
नवसारी जागीर नेव एक लाख स्वर्ण टके देकर वापस भेज दिया। कालान्तर में राजा रामचन्द्र देव
अलाउद्दीन का मित्र बन गया। जब मलिक काफूर द्वारसमुद्र विजय के लिए जा रहा
या तो रामचन्द्र देव ने उसकीभरपूर सहायता की थी।


तेलंगाना- तेलंगाना में काकतीय वंशीय राजा राज्य करते थे। तत्कालीन तेलंगाना
का शासक प्रताप रूद्र देव था जिसकी राजधानी वारंगल थी। नवम्बर, 1309 में काफ्र
तेलंगाना के लिए रवाना हुआ। रास्ते मेंरामचन्द्र देव ने कार की सहायता की।
कार ने हीरों के खानों के जिले असीरगढ़ मैरागढ़) के मार्ग से तेलंगाना में प्रवेश
किया। 1310 ईमें काफूर अपनी सेना के साथ वारगंल पहुंचा। प्रतापम्द्र देव ने
अपनी एकसोने की मूर्ति बनवाकर गले में एक सोने की जंजीर डालकर आत्मसमर्पण
स्वरूप काफूर के पास भेजासाथ ही 100 हाथी700 घोड़ेअपार धन राशि एवं
चर्षिक कर देने के वायदे के साथ अलाउद्दीन की
अधीनता स्वीकार कर ली। सम्भवत:इसी समय संसार प्रसिद्ध 'कोहिनूर ' हीरा को प्रताप रुद्र देव ने काफूर को दिया था।काफूर ने इसे सुल्तान अलाउद्दीन को सौंप दिया।

होयसल-
होयसल का शासक वीर
बल्लाल तृतीय था। इसकी राजधानी द्वारसमुद्र थी। 1310 ई. में मलिक काफूर ने होयसल के लिए प्रस्थान किया। 
इस प्रकार 1311 ई. में साधारण युद्ध के पश्चात् बल्लाल देव ने आत्मसमर्पण कर

शिलाउद्दीनकी अधीनता ग्रहण कर ली। उसने माबर के अभियान में काफूर की
सहायता भी की। सुल्तान अलाउद्दीन ने बल्लाल देव को खिलअत, ‘एक मुकुट,
पुत्र' एवं दस लाख टके की थैली भेंट किया।
पाण्ड्यपाण्डेय कोमाबर' (मालाबार) के नाम से भी जाना जाता था। यहां
-के शासक सुन्दर पाण्डेय एवं वीर पाण्डेय थे। दोनों में हुए सत्ता संघर्ष में सुन्दर

         पाण्डे पराजित हुआ। सुन्दर पाण्डेय द्वारा सहायता मांगने पर काफूर ने 1311
ई. में पाण्यों के महत्वपूर्ण केन्द्र वीरचूल' पर आक्रमण कर दिया पर वीर पाण्डेय
हाथ नहीं आया। काफूर ने बरमतपती में स्थित
लिंग महादेव' के सोने के मंदिर मेंखूब लूटपाट की। इसके अतिरिक्त ढेर सारे मंदिर उसके द्वारा लूटे एवं तोड़े गये।
कार ने रामेश्वरम् तक आक्रमण दि
मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाया। 1311 ई. मेंकाफूर विपुल धन सम्पत्ति के
साथ दिल्ली पहुंचापरन्तु उसे वीर पाण्डेय को पकड़ने में सफलता प्राप्त नहीं हुई।
इस दक्षिण पाण्ड्यप्रकार स्वीकार । में राज्य ने अलाउद्दीन की अधीनता नहीं की
सम्भवतः धन केदृष्टिकोण से यह काफूर का सर्वाधिक सफल अभियान था।

देवगिरि का द्वितीय अभियान (1312 ई.)

        देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव  की मृत्यु के बाद उसके पुत्र शंकर देव' सिंहन देवने दिल्ली से सम्बन्ध
तोड़लिया। अतः 1313 ई. में काफूर को पुनः देवगिरि भेजा गया। युद्ध में शंकर देव
मारा गया। देवगिरि का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया। 1315
ई. में काफूर को वापस दिल्ली बुला लिया गया। इस तरह अलाउद्दीन का साम्राज्य
पश्चिमोत्तर भाग में सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण में मदुरा तक तथा पूर्व में वाराणसी
एवं अवध से लेकर पश्चिम में गुजरात तक विस्तृत था। उड़ीसा, बंगाल, बिहार
एवं कश्मीर अलाउद्दीन के साम्राज्य में सम्मिलित नहीं थे। अलाउद्दीन के दक्षिण

           अभियानों के परिणाम स्वरूप दक्षिण में इस्लाम का प्रभाव
धर्म बढ़ा और मुस्लिमसंस्कृति का विस्तार हुआ।
मंगोल आक्रमण- अलाउद्दीन के
समय में हुए मंगोलों के आक्रमण का उद्देश्य
भारत विजय और प्रतिशोध की भावना थी। 1297-98 ई. में मंगोल सेना ने अपने
नेता कादर के नेतृत्व में पंजाब एवं लाहौर पर आक्रमण किया। जालन्धर के
निकट इन को सुल्तान की सेना ने परास्त कर दिया। इस सेना का नेतृत्व
आक्रमणकारियों जफर खां उलुग खां ने किया था। मंगोलों का दूसरा आक्रमण सलदी के नेतत्व।
एवंमें 1298 ई. में सहबान पर हुआ।

      जफर खां ने इस आक्रमण को सफलता पूर्वक
असफल कर दिया। 1299 ई. में कुतलुग ख्वाजा के नेतृत्व में मंगोल सेना के
मण को जफर खां ने पुनः असफल कर दिया। इसी युद्ध के दौरान जफर खां
मारागया, क्योंकि अलाउद्दीन एवं उलुग खां के नेतृत्व वाली सेना से उसे कोई
सहायता नहीं मिली। 1303 ई. में मंगोल सेना का चौथा आक्रमण तार्गी के नेतत्व
में हुआ। लगभग 2 माह सीरी के
तक किले को घेरे रहने
के बाद भी उसे सफलता
न लने पर दिल्ली के समीप के क्षेत्रों में लूटपाट कर ता वापस चला गया।

   1305 ई. में अलीबेग, ‘तार्ताक' एवं 'तार्गी' के नेतृत्व मंगोलों ने अमरोहा
पर आक्रमण कियापरन्तु मलिक कार एवं गाजी मलिक ने मंगोलों को बुरी तरह
T पराजित किया। 1306 ई. में मंगोल सेना का
नेतृत्व करने वाला इकबालमन्द गाज।
र मलिक (गयासुद्दीन तुगलक) द्वारा रावी नदी के किनारे परास्त किया गया। गाजी
। मलिक तुगलक को अलाउद्दीन ने अपना सीमा रक्षक नियुक्त किया। इस प्रकार
अलाउद्दीन ने अपने शासन काल में मंगोलों के सबसे अधिक एवं सबसे भयानक
न आक्रमण का सामना करते हुए सफलता प्राप्त की। मंगोल आक्रमण से सुरक्षा के
के लिए उसने 1304 ई. में सीरी को अपनी

राजधानी बनाया तथा किलेबन्दी की।
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