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भारत पर तुर्की आक्रमण कब हुआ था

 भारत पर तुर्की आक्रमण


अरबों के बाद तुकों ने भारत पर आक्रमण किया। तुर्क चीन की उत्तरीपश्चिमी सीमाओं पर निवास करने वाली एक असभ्य एवं बर्बर जाति थी। उनका उद्देश्य एक विशाल मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करना था। अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने गजनी में स्वतन्त्र तुर्क राज्य की स्थापना की। 977 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर अपना अधिकार कर लिया। भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम मुस्लिम मुहम्मद बिन कासिम (अरबी) था जबकि भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्की मुसलमान सुबुक्तगीन था। सुबुक्तगीन से अपने राज्य को होने वाले भावी खतरे का पूर्वानुमान लगाते हुए दूरदर्शी हिन्दूशाही वंश के शासक जयपाल ने दो बार उस पर आक्रमण कियाकिन्तु दुर्भाग्यवश प्रकृति

की भयावह लीलाओं के कारण उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। अपमान एवं क्षोभ से संतप्त जयपाल ने आत्महत्या कर ली। 986 ई. में सुबुक्तगीन ने हिन्दुशाली राजवंश के राजा जयपाल के खिलाफ एक संघर्ष में भाग लियाजिसमें जयपाल की पराजय हुई। सुबुक्तगीन के मरने से पूर्व उसके राज्य की सीमायें अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैली थी। सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी महमूद गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा। 'तारीख ए गुजीदा’ के अनुसार महमूद ने सीस्तान

राजा खलफ बिन अहमद को पराजित कर सुल्तान की उपाधि धारण की। इतिहासविदों के अनुसार सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला महमूद पहला तुर्क शासक था। महमूद ने बगदाद के खलीफा से 'यामीनुदीला तथा 'अमीन उल मिल्लाह' उपाधि प्राप्त करते समय प्रतिज्ञा की थी कि वह प्रति वर्ष भारत पर एक आक्रमण करेगा। इस्लाम धर्म के प्रचार और धन प्राप्ति के उद्देश्य से उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किये । इलियट के अनुसार ये सारे आक्रमण 1001 से 1026 ई. तक किये गये । अपने भारतीय आक्रमणों के समय महमूद ने 'जेहाद' का नारा दिया और साथ ही अपना नाम वृत शिकनरखा। हालांकि इतिहासकार महमूद गजनवी को मुस्लिम इतिहास में प्रथम सुल्तान मानते हैं किन्तु सिक्कों पर उसकी उपाधि

केवल 'अमीर महमूद' मिलती है।
महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की दशा 10वीं शताब्दी ई. के अन्त तक भारत अपनी बाहरी सुरक्षा प्राचीर जाखुलिस्तान तथा अफगानिस्तान खो चुका था। परिणामस्वरूप इस मार्ग द्वारा होकर भारत पर सीधे आक्रमण किया जा सकता था। इस समय भारत में राजपूत राजाओं का शासन काबुल एवं पंजाब का हिन्दुशाही राज्य- महमूद गजनवी के आक्रमण के समय पंजाब एवं काबुल में हिन्दुशाही वंश का शासन था। यह राज्य चिनाब नदी के हिन्दुकुश तक फैला हुआ था। इस राज्य के स्वामी ब्राह्मण राजवंश के शाहिया अथवा हिन्दुशाह थे। इसकी राजधानी उभाण्डपुर थी। महमूद गजनवी के आक्रमण के समय यहां का शासक जयपाल था। 



मुल्तान- यह हिन्दुशाही राज्य के दक्षिण में स्थित था। यहां का शासन करमाथी शिया मुसलमानों के हाथ में था। महमूद गजनवी के आक्रमण के समय यहां का शासक फतेह दाऊद था।

सिन्य- अरबों के आक्रमण के समय से ही सिन्ध पर उनका आधिपत्य था। महमूद गजनवी के आक्रमण के समय सिन्य प्रांत में अरबों का शासन था।

कश्मीर का लोहार वंश- महमूद गजनवी के सिंहासनारूढ़ के समय कश्मीर की शासिका रानी दिद्दा थी। 1003 ई. में दिद्दा की मृत्यु के बाद संग्रामराज गद्दी  पर बैठा। उसने लोहार वंश की स्थापना की। 

कन्नौज के प्रतिहार-महमूद गजनवी के आक्रमण के समय कन्नौज पर प्रतिहारों का शासन था। प्रतिहारों की राजधानी कन्नीज थी। सबसे पहले बंगाल के राज धर्मपाल ने इस नगर पर आक्रमण किया तथा कुछ वर्षों तक शासन किया। महमूद गजनवी के आक्रमण (1018 ई.) के समय यहां का शासक राज्यपाल था। उसने राजधानी कन्नौज से बारी में स्थानान्तरित किया था।

बंगाल का पाल वंश- पाल वंश की स्थापना 750 ई. में गोपाल ने की थी। । इस देश का महत्वपूर्ण शासक देवपाल था। महमूद गजनवी केआक्रमण के समय यहां का शासक महीपाल प्रथम (992-1026 ई.) था। के तोमरतोमर राजपूतों की एक शाखा थे। तोमर शासक अनंगपाल दिल्ली नगर का संस्थापक था।

शाकंभरी के चौहान- प्रतिहार राज्यों के विघटन के बाद जिन राजपूतों का उदय हुआ था उमें अजमेर के शाकम्भरी के चौहान प्रमुख थे। पृथ्वीराज चौहान इस श का सबसे महान शासक था तथा उसकी शत्रुता कन्नौज के राजा जयचन्द्र से थी।

मालवा का परमार वंश- इस वंश की स्थापना नवीं शताब्दी ईस्वी के पूर्वार्द्ध में कृष्णराज ने किया था। इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक राजा भोज था। यह महमूद गजनवी का समकालीन शासक सिंघुराज था।

गुजरात का चालुक्य वंश - महमूद गजनवी के आक्रमण के समय गुजरात पर चालुक्यों का शासन था। इस काल में चालुक्य वंश के चार शासक हुए- चामुण्डराजा (71009 ., वल्लभ राज (1009 ई., दुर्लभ राज (1009-24 ई.) तथा भीम प्रथम (|024-64 ई.)

देलखण्ड के चंदेल- महमूद गजनवी के आक्रमण के समय बुन्देलखंड में चंदेलों का शासन  था। उस समय बुंदेलखण्ड की राजधानी खजुराहो थी

त्रिपुरी के कलचुरी वंश- कलचुरी वंश को हैहय वंश भी कहा जाता है। गुजरात के सोलंकी वंश से इसका संघर्ष चलता था। महमूद के समकालीन यहां दो शासक थे- कोक्कल द्वितीय (990-1015 ई.) तथा गांगेयदेव (1015-1040 ई.)।

दक्षिण भारत- दक्षिण भारत में अनेक राजवंशों का शासन था। 11वीं शताब्दी के आरम्भ में यहां की राजनीति पर चोलों और चालुक्यों का वर्चस्व था। महमूद गजनवी के आक्रमण के समय दक्षिण के दो राज्य प्रमुख थे- (1) परवर्ती चालुक्य और (2) चोल। चोल शासकों में राजराज प्रथम तथा राजेन्द्र प्रथम (1014-44 ई.)। महत्वपूर्ण शासक थे। परवर्ती चालुक्य वंश का संस्थापक तैल द्वितीय था। कल्याणी के चालुक्य वंश के शासकों में महमूद गजनवी का समकालीन शासक सत्याश्रय (997-1015 ई.) तथा जयसिंह द्वितीय और दंगी के चालुक्य शासकों में शक्तिवर्मन प्रथम महमूद गजनवी का समकालीन थे।

महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण (1001-1026 ई.) 999 ई. में जब महमूद गजनवी सिंहासन पर बैठा तो उसने प्रत्येक वर्ष भारत पर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की। उसने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया यह नहीं हैकिन्तु सर हेनरी इलियट ने महमूद गजनवी के 17 आक्रमणों। स्पष्ट ।

प्रथम चायण (1001 ई.) महमूद गजनवी ने अपना आक्रमण 101 . में भारत के सीमावती जगह पर किया। पर यहां उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
दूसरा आक्रमण (100-1002 ई.) अपने दूसरे अभियान के अन्तर्गत महमूद गजनवी ने सीमांत प्रदेशों के शासक जयपाल के विरुद्ध युद्ध किया उसकी राजधानी बैहिन्द अधिकार कर लिया। जयपाल इस पराजय के अपमान को पर सहन नहीं कर सका और आग में जलकर आत्महत्या कर लिया।
तीसरा आक्रमण (1000 ई.) महमूद गजनवी ने उत्छ के शासक वजिरा को पत्रित करने के लिए आक्रमण किया। महमूद के भय के कारण वाजिरा सिन्यु 1 नदी के किनारे जंगल में शरण लेने को भागा और अन्त में उसने आत्महत्या कर ली।
चौथा भाकमण (1005 ई.)- 1005 ई. में महमूद गजनवी ने मुल्तान के शासक या व के विरुद्ध मार्च किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भटिण्डा के शासक आनन्दपाल को पराजित किया और बाद में दाऊद को पराजित कर उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया।

पांचवा आक्रमण (1007 ई.)- पंजाब में ओहिन्द पर महमूद गजनवी ने जयपाल के पौत्र सुखपाल को नियुक्त किया था। सुखपाल ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था और उसे नौशाशाह कहा जाने लगा था। 1007 ई. में सुखपाल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। महमूद गजनवी ने ओहिन्द पर आक्रमण किया और नीशाशाह को बन्दी बना लिया गया।
छठां आक्रमण (1008 ई.)- महमूद गजनवी ने 1008 ई. अपने इस अभियान के अन्तर्गत पहले आनन्दपाल को पराजित किया। बाद में उसने इसी वर्ष कांगड़ी पहाड़ी में स्थित नागरकोट पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में महमूद को अपार धन की प्राप्ति हुई।
सातवां (ई.)- इस आक्रमण के अन्तर्गत महमूद गजनवी ने आक्रमण 1009 अलवर राज्य के नारायणपुर पर विजय प्राप्त की।
आठवां आक्रमण (1010 ई.) - महमूद का आठवां आक्रमण मुल्तान पर था। वहां के शासक दाऊद को पराजित कर उसने मुल्तान के शासन को सदा के लिए अपने अधीन कर लिया।
नौवां आक्रमण (1013 ई.) अपने नवें अभियान के अन्तर्गत महमूद गजनवी ने थानेश्वर पर आक्रमण किया।
दसवां आक्रमण (1013 . )- महमूद गजनवी ने अपना दसवां आक्रमण नन्दशाह पर किया। हिन्दूशाही शासक आनन्दपाल ने नन्दशाह को अपनी नयी राजधानी बनाया था। यहां का शासकत्रिलोचनपाल थात्रिलोचनपाल वहां से भाग कर कश्मीर में शरण लिया। तुकों ने नन्दाह में लूटपाट की।

ग्यारहवां आक्रमण (1015 ई.) महमूद का यह आक्रमण त्रिलोचन के पुत्र भीमपाल के विरुद्ध था जो कश्मीर पर शासन कर रहा था। युद्ध में भीमपाल पराजित हुआ। ।

बारहवाँ आक्रमण (1018 ई.) अपने बारहवें अभियान में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया। उसने बुलंदशहर के शासक हरदत की । पराजित किया। उसने महावन के शासकबलाचंद पर भी आक्रमण किया। 1019 ई. में उसने पुनः कन्नीज पर आक्रमणकिया वहां के शासक राज्यपाल ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया। राज्यपाल द्वारा इस से कलिंजर का दिल से आत्मसमर्पण शासक क्रोधित हो गया। उसने ग्वालियर के शासक के साथ संधि कर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और राज्यपाल को मार डाला।

तेरहवां आक्रमण (1020 ई.) महमूद का तेरहवां आक्रमण 1020 ई. में हुआ था। इस अभियान में उसने बारीबुंदेलखण्ड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया।
चौदहवां आक्रमण (1021 ई.) अपने चौदहवें आक्रमण के दौरान महमूद ने ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया। कालिंजर के शासक गोण्डा ने विवश होकर संधि कर ली।
पन्द्रहवां आक्रमण (1024 ई) इस अभियान में महमूद गजनवी ने लोदोर्ग (जैसलमेर)चिकलोदर (गुजरात) तथा अन्हिलवाड़ा गुजरातपर विजय स्थापित की।

सोलहवां आक्रमण (1025 ई.) इस 16वें अभियान में महमूद गजनवी ने सोमनाथ को अपना निशाना बनाया। उसके सभी अभियानों में यह अभियान सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। सोमनाथ पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने वहां प्रसिद्ध मंदिर को तोड़ दिया तथा अपार धन प्राप्त किया। यह मंदिर गुजरात में समुद्र तट पर स्थित अपनी अपार संपत्ति के लिए प्रसिद्ध था। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50000 ब्राह्मणों एवं हिन्दुओं का कत्ल कर दिया था। पंजाब के बाहर किया गया महमूद का यह अंतिम आक्रमण था।

सत्रहवां आक्रमण (1027 ई.)- यह महमूद गजनवी का अन्तिम आक्रमण था। यह आक्रमण सिंध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों के विरुद्ध था। इसमें जाट पराजित हुए। महमूद के भारतीय आक्रमण का वास्तविक उद्देश्य धन की प्राप्ति था। वह एक मूर्तिभंजक आक्रमणकारी था। महमूद की सेना में सेवंदराय एवं तिलक जैसे हिन्दू उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति थे। महमूद के भारत आक्रमण के समय उसके साथ प्रसिद्ध इतिहासविद्, गणितज्ञ, भूगोलवेत्ता, खगोल एवं दर्शन शास्त्र का ज्ञाता तथा किताबुल हिन्द’ का लेखक अलबरूनी भारत आया। अलबनी महमूद का दरबारी कवि था। ‘तहकीक-ए-हिन्द’ पुस्तक में उसने भारत का विवरण लिखा है इसके अतिरिक्त इतिहासकार ‘उतबी, तारीख-ए-सुबुक्तगीन का लेखक  बैहाकी भी उसके साथ आये बैहाकी को इतिहासकार लेनल ने पूर्व पेपस की उपाधि प्रदान की है। लेखक फिरदौसी’ फारस , "शाहनामा' का , कद जीबुलतानी का विहार उसी महान शिक्षक और विद्वान , विद्वान अरजी और जसवी आदि दरबारी कवि थे।



मुहम्मद गोरी एवं भारत पर आक्रमण

शिहाबुद्दीन उ मुईनुद्दीन मुहम्मद गोरी ने भारत में हुई राज्य की स्थापना की गजनी और हिरात के मध्य स्थित छोटा पहाड़ी प्रदेश गौर पहले महमूद गजनवी के कब्जे में था। गोर में ‘सवनी वंश’ सबसे प्रधान का था। मुहम्मद गौरी ने भी भारत पर अनेक आक्रमण किये। उसने प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान के विरुद्ध किया। एक दूसरे आक्रमण के अन्तर्गत गोरी ने 117 ई. में गुजरात पर आक्रमण किया। यहां पर सोलंकी वंश (चालुक्य) का शासन था। इसी देश के भीम द्वितीय (मूलराज द्वितीय) ने मुहम्मद गोरी को आबू पर्वत के समीप परास्त किया। सम्भवतः यह मुहम्मद गोरी की प्रथम भारतीय पराजय थी। इसके बाद 1179-86 ई. के बीच उसने पंजाब पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। 1179 ई. उसने पेशावर को तथा 1185 ई. में स्यालकोट को जीता। 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान के साथ गोरी की भिड़न्त तराइन के मैदान में हुई। इस युद्ध में गोरी बुरी तरह परास्त हुआ। इस युद्ध को तराईन का प्रथम युद्ध' कहा गया है। हराइन का। द्वितीय युद्ध1192 ई. में तराईन के मैदान में हुआ, पर इस युद्ध का परिणाम।

मुहम्मद गोरी के पक्ष में रहा तथा इसके उपरांत पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी गई। 1194 ई. में प्रसिद्ध चन्दावर का युद्ध मुहम्मद गोरी एवं राजपूत न जयचन्द्र के बीच लड़ा गया। जयचन्द्र की पराजय के उपरान्त उसकी हत्या कर दी। गई। जयचन्द्र को पराजित करने के उपरान्त मुहम्मद गोरी अपने विजित प्रदेशों की जिम्मेदारी कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपकर वापस गजनी चला गया मुहम्मद गोरी भारतीय विजयों तथा नवस्थापित तुक राज्य का प्रत्यक्ष विवरण मिनहाज को "तबकात-ए-नासिरी में मिलता है। ऐबक ने अपनी महत्वपूर्ण विजय के अन्तर 1194 ई. दी गई। 1194 ई. में प्रसिद्ध चन्दावर का युद्ध मुहम्मद गोरी एवं राजपूत नरेश जयचन्द्र के बीच लड़ा गया। जयचन्द्र की पराजय के उपरान्त उसकी हत्या कर दी गई। जयचन्द्र को पराजित करने के उपरान्त मुहम्मद गोरी अपने विजित प्रदेशों की

जिम्मेदारी कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपकर वापस गजनी चला गया। मुहम्मद गोरी की। भारतीय विजयों तथा नवस्थापित तुर्क राज्य का प्रत्यक्ष विवरण मिनहाज की रचना 'तबकात-ए-नासिरीमें मिलता है। ऐबक ने अपनी महत्वपूर्ण विजय के अन्तर्गत 1194 ई. में अजमेर को जीतकर यहां पर स्थित जैन मंदिर एवं संस्कृत विश्वविद्यालय को नष्ट कर उनके मलवे पर क्रमशः ‘कुव्वतउलइस्लाम’ एवं ‘ढाई दिन के झोपड़े’ का निर्माण करवाया। ऐबक ने 1202-03 ई. में बुन्देलखण्ड के मजबूत कालिंजर के किले को जीता। 1197 से 1205 ई. के मध्य ऐबक ने बंगालएवं बिहार पर आक्रमण कर उदण्डपुर, बिहार, विक्रमशिला एवं नालन्दा विश्वविद्यालय पर अधिकार कर लिया। 1205 ई. में मुहम्मद गोरी पुनः भारत आया और इस बार उसका मुकाबला खोखरों से हुआउसने खोखरों को पराजित कर उनका बुरी कत्ल किया। तरह इस विजय के बाद मुहम्मद गोरी जब वापस गजनी जा रहा था। तो मार्ग में 13 मार्च 1206 को उसकी हत्या कर दी गई। अन्ततः उसके शव को गजनी ल जाकर। गोरी की मृत्यु के बाद उसने गुलाम सरदार कुतुबुद्दीन गया ऐबक

1206 ई. में गुलाम वंश की स्थापना की read

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