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jaisalmer vijay khilji bansh 1299 ka sashan kaal


                            जैसलमेर विजय
- सुल्तान की सेना के कुछ घोड़े चुराने के कारण अलाउद्दीन
ने जैसलमेर के शासक दृदा एवं उसके सहयोगी तिलक सिंह को 1299 ई. में
पराजित किया।


रणथम्भौर विजय -
   रणथम्भौर का शासक हम्मीर देव अपनी योग्यता एवं
साहस के लिए प्रसिद्ध था। अलाउद्दीन के लिए रणथम्भौर को जीतना इसलिए भी
आवश्यक था। क्योंकि रणथम्भौर के जीते बिना पूरे राजस्थान को जीतना
कठिन था। साथ ही राणा हम्मीरदेव ने विद्रोही मंगोल नेता मुहम्मद शाह एवं केहब को
अपने यहां शरण दे रखी थी, इसलिए भी अलाउद्दीन रणथम्भौर को जीतना चाहता।
था। अतः जुलाई, 1301 में अलाउद्दीन
अपने ने रणथम्भौर के किले को कब्जे में
jaisalmer vijay khilji bansh 1299 ka sashan kaal
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         कर लिया। हम्मीर देव वीरगति को प्राप्त हुआ। अलाउद्दीन ने रनमल और उसके ।
साथियों का वध करवा दिया जो हम्मीर देव से विश्वासघात करके उससे आ मिले
थे'तारीख-ए- एवं 'हम्मीर महाकाव्य' में हम्मीर देव
। अलाई' एवं उसके परिवार
के लोगों का जौहर द्वारा रणथम्भौर युद्ध दौरान
मृत्यु प्राप्त होने का वर्णन है। के ।
ही नुसरत खां की मृत्यु हुई।

चित्तौड़ पर आक्रमण एवं मेवाड़ विजय

(1303 ई.)- मेवाड़ का शासक राणा
 रतन सिंह था जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी। चित्तौड़ का किला सामरिक दृष्टिकोण
 से बहुत सुरक्षित स्थान पर बना हुआ था। इसलिए यह किला अलाउद्दीन की निगाह
में चढ़ा हुआ था। कुछ इतिहासकारों ने अमीर खुसरव के रानी शैबा और सुलेमान
न के प्रेम प्रसंग के उल्लेख के आधार पर और पद्मावत' की कथा के आधार पर
। चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण रानी पद्मिनी के अनुपम सौन्दय
के प्रति उसके आकर्षण को ठहराया है। अन्ततः 28 जनवरी1303 को सुल्तान
चित्तौड़ के किले पर अधिकार करने में सफल हुआ। राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद

   हुआ औरउसकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया।
किले पर अधिकार के बाद सुल्तान ने लगभग 30000 राजपूत वीरों का कल
न करवा दिया। उसने चित्तौड़ का नाम खिजू खां के नाम पर
खिजाबाद रखा और ने उसे खिजू खां को सौंप कर दिल्ली वापस आ गया।
चित्तौड़ को पुनः स्वतन्त्र कराने का प्रयत्न राजपूतों द्वारा जारी रहा। इसी बीच
से अलाउद्दीन ने खिज़ खां को वापस दिल्ली बुलाकर चित्तौड़
दुर्ग की जिम्मेदारी जता न सरदार मालदेव को सौंप दिया। अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात गहिलौत जवा
के हम्मीरदेव ने मालदेव पर आक्रमण कर 1321 ई. में चित्तौड सहित पूरे मेवाड़
 को आजाद करवा लिया। इस तरह अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद चित्तौड एक बार
र फिर पूर्ण स्वतन्त्र हो गया।

मालवा विजय
    (1305 ई.) मालवा पर शासन करने वाला महलकदेव एवं
उसका सेनापति हरनन्द (कोका प्रधान) बहादुर योद्धा थे। 1305 ई. में अलाउद्दीन
ने मुल्तान के सूबेदार आईनउलमुल्क के नेतृत्व में एक सेना को
मालवा पर अधिकार करने के लिए भेजा। दोनों पक्षों के संघर्ष में महलकदेव एवं उसका सेनापा ।
हरनन्द मारा नवम्बर, में पर गया। 1305 किले अधिकार के साथ ही उज्जैन,
धारानगरीचंदेरी आदि को जीत कर मालवा समेत दिल्ली सल्तनत मिला लिया
गया। 1308 ई. में अलाउद्दीन ने सिवाना पर अधिकार करने के लिए आक्रमण
किया। वहां के परमार राजपूत शासक शीतलदेव ने कड़ा। परन्तु अन्तत
न गया वह मारा । कमालुद्दीन गुर्ग को वहां का शासक नियुक्त किया था ।


जालौर1304 .
       जालौर के शासक कान्हणदेव ने
1304 अलाउद्दीन की अधीनता को स्वीकार कर लिया था पर धीरे-धीरे उसने अपन
य ईकमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में सुल्तान की सेना में कान्हणदेव लिया। 1305 . में
कमालुदीन गुर्गके नेतर्वमें सुलतान की सेना में कान्हणदेव
को युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी। इस प्रकार जालौर पर अधिकार
के साथ ही अलाउद्दीन की राजस्थान विजय का कठिन कार्य पूरा हुआ। 1311
ई. तक उत्तर भारत में सिर्फ नेपाल, कश्मीर एवं असम ही ऐसे भाग शेष बचे थे।
जिन पर अलाउद्दीन अधिकार नहीं कर सका था। उत्तर भारत की विजय के बाद

         अलाउद्दीन ने दक्षिण भारत की ओर अपना रुख किया। अलाउद्दीन की दक्षिण विजय
अलाउद्दीन के समकालीन दक्षिण भारत की तीन महत्वपूर्ण शक्तियां थीं- 1.
देवगिरि के यादव2. दक्षिणपूर्व तेलंगाना के काकतीय और 3. द्वारसमुद्र के
होयसल । अलाउद्दीन द्वारा दक्षिण भारत के राज्यों को जीतने के उद्देश्य
के पीछे धन की चाह एवं विजय लालसा थी। वह इन राज्यों को अपने अधीन कर वार्षिक कर
वसूल करना चाहता था। दक्षिण भारत की विजय का मुख्य श्रेय मलिक काफूर
को ही जाता है। अलाउद्दीन के शासन काल में दक्षिण में सर्वप्रथम 1303 ई. में
तेलंगाना पर आक्रमण किया गया। तेलंगाना का शासक प्रताप रूद्रदेव द्वितीय ने
अपनी एक सोने की मूर्ति बनवाकर और उसके गले में सोने की जंजीर डालकर


      आत्मसमर्पण हेतु मलिक काफूर के पास भेजा था। इसी अवसर पर प्रतापल देव  ने मलिक काफूर को संसार प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा दिया । दुर्भाग्यवश यह था
आक्रमण प्रतापरुद्रदेव द्वारा विफल कर दिया गया था।
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