राजस्व सुधारों के अन्तर्गत
अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम
खालसा मिल्क, इनाम एवं वक्फ के अन्तर्गत दी गई भूमि को वापस लेकर उसे | में बदल दियासाथ ही उसने मुकदमों, बूतों एवं बलाहारों के विशेष अधिकार को वापस ले लिया था। कर व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए दीवाने मुस्तखराज विभाग की स्थापना की थी। अलाउद्दीन की राजस्व नीति की सफलता, कर निर्धारण और कर वसूली का श्रेय उसके नायब वजीर शर्मा कायिनी को है।
अलाउद्दीन ने पैदावार का 50 भूमिकर (खराज) के रूप में लेना निश्चित किया
था। अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान को जिसने भूमि की पैमाइश कराकर (मसाहत
उसकी
वास्तविक आय पर लगान लेना निश्चित किया था। अलाउद्दीन ने भूमि के एक
विस्वा’ को एक इकाई माना। भूमि मापन की एक एकीकृत पद्धति अपनायी गयी।
थी तथा सबसे समान रूप से कर लिया जाता था। इसका परिणाम यह हुआ
कि धीरे-धीरे जमींदार कृषकों की स्थिति में आ गये । सुल्तान लगान को
अन्न में
वसूलने को महत्व देता था। अलाउद्दीन द्वारा लगाये गये दो नवीन कर थे
चराई कर, जो दुधारू पशुओं पर लगाया जाता था और घरी
कर, जो घरों एवं झोपड़ी पर लगाया जाता था। ‘करही' नाम के कर का भी
उल्लेख मिलता है। 'जजिया' कर गैर मुस्लिमों से लिया जाता था। ‘खुम्स' कर 40
भाग राज्य के हिस्से में एवं 1/5 भाग सैनिकों
को मिलता था। जकात केवल मुसलमानों से लिया जाने वाला एक धार्मिक कर था जो सम्पत्ति का 40वां
(25
भाग) हिस्सा होता था। दीवान-ए-मुस्तखराज को राजस्व एकत्रित करने वाले
अधिकारियों के बकाया राशि की जांच करने और वसूलने का कार्य सौंपा। जलोदर
रोग से ग्रसित अलाउद्दीन अपना अन्तिम समय अत्यन्त कठिनाई में व्यतीत
करता ।
हुआ 5 जनवरी1316 को मृत्यु को प्राप्त हो गया।
अलाउद्दीन के दरबार में अमीर खुसरो तथा हसन निजामी जैसे उच्च कोटि के
विद्वानों को संरक्षण प्राप्त था। स्थापत्य कला क्षेत्र
के में अलाउद्दीन खिलजी ने वृत्ताकार
अलाई दरवाजा अथवा कुश्क-एशिकार का निर्माण करवाया।
उसके द्वारा बनाया। गया । अलाई दरवाजा प्रारम्भिक तुर्की कला का एक श्रेष्ठ नमूना माना
जाता। है।
शिहाबुद्दीन उमर
- मलिक काफूर के कहने पर ने ।खिज्र खां को उत्तराधिकारी न बना कर अपने 5-6 वषीय पुत्र शिहाबुद्दीन उमर
को।
उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद काफूर ने
शिहाबुद्दीन
को सुल्तान बना कर सारा अधिकार अपने हाथों में सुरक्षित कर लिया। लगभग
35 दिन के सत्ता उपभोग के बाद काफूर की हत्या अलाउद्दीन के तीसरे
पुत्र मुबारक
ई खिलजी ने करवा दी। कार की हत्या के बाद वह स्वयं
सुल्तान का संरक्षक बन गया और कालान्तर में उसने शिअबुद्दीन को अँधा करा के कैद करबा दिया
कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी-
19 अप्रैल1316 को कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के नाम से दिल्ली के सिंहासन । अपने शासन काल
19 अप्रैल1316 को कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के नाम से दिल्ली के सिंहासन । अपने शासन काल
पर बैठामें उसने गुजरात के विद्रोह का दमन कियासाथ ही देवगिरि को 1318
ई. में पुनर्विजित किया। इसके अतिरिक्त उसकी कोई विजय नहीं मिलती है। अपने सैनिकों को
छ:
माह का अग्रिम वेतन दिया। विद्वानों एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की
छीनी गयी जागीर
वापस कर दी। अलाउद्दीन की कठोर दण्ड व्यवस्था एवं बाजार नियंत्रण आदि व्यवस्था
को समाप्त कर दिया। उसे नग्न स्त्री-पुरुष की संगत पसन्द थी। कभीकभी
वह राज्य
दरबार में स्त्रियों का वस्त्र पहन कर आ जाता था। बरनी के अनुसार
मुबारक कभी कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था। उसने ‘अलइमाम, उल
इमाम’ एवं खिलाफतउल्लाह' की उपाधि धारण किया। उसने खिलाफत के
प्रति
भक्ति को हटाकर अपने को 'इस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान’ और स्वर्ग तथा पृथ्वी
के अधिपति का खलीफा' घोषित किया। साथ ही उसने ‘अलवासिक विल्लाहकी धर्म
प्रधान उपाधि धारण की। मुबारक के वजीर ख़ुशरवशाह ने 15 अप्रैल1320
को उसकी हत्या कर स्वयं दिल्ली की गद्दी को हथिया लिया।
नासिरुद्दीन ख़ुशरवशाह-
नासिरुद्दीन खुशरवशाह 15 अप्रैल1320 को ।
नासिरुद्दीन खुशरवशाह 15 अप्रैल1320 को ।
दिल्ली के सिंहासन पर बैठा । वह हिन्दू धर्म से परिवर्तित मुसलमान
था।
उसने अपने नाम से खुतबे पढ़ाये और साथ ही ‘पैगम्बर के सेनापति' की उपाधि धारण की। ।
उसके शत्रुओं ने उसके विरुद्ध “इस्लाम का शखू" और "इस्लाम
खतरे में है।
के नारे लगाए। साढ़े चार माह के शासन के उपरान्त 5 लगभग सितम्बर1320 के मध्य युद्ध हुआ आदि बांटकर अपने
म खुशरवशाह ने दिल्ली के शेख निजामुद्दीन औलिया को धन।
का पक्ष में कर लिया था। 7 सितम्बर, को गाजी मलिक अलाउद्दीन
के हजार स्तम्भों। शर वाले महल में प्रवेश किया और 8 सितम्बर1320 को दिल्ली के तख्त पर
बेटा।
पराजित हुआ।
।
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