Ticker

6/recent/ticker-posts

balban ka raajtv shidhant 1265-1290


                 बलबन का राजत्व सिद्धान्त-
 बलबन दिल्ली सल्तनत का पहला ऐसा सुल्तान था जिसने अपने राजत्व सिद्धान्त की विस्तार पूर्वक व्याख्या की। उसके राजद
सिद्धान्त के महत्वपूर्ण तत्व थे- राजवंशज अर्थात् राजा को राजवंश से सम्बन्धित होना चाहिए। राजत्व को दैवी संस्था मानते हुए बलबन ने कहा कि राजा पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि नियाबते खुदाई) होता है, अतउसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात् है। ऐसी स्थिति में उसके द्वारा किया गया कार्य
न्याय संगत होता है।
balban ka raajtv shidhant 1265-1290
balban ka raajtv shidhant 1265-1290

            बलबन ने अपने पुत्र बुगरा खां से कहा था कि सुल्तान का पद निरंकुशता का
सजीव प्रतीक है। बलबन ने उच्च कुल एवं निम्न कुल के व्यक्तियों के बीच अन्तर
स्थापित करने को महत्व दिया।
बलबन के अनुसार राजत्व के लिए भव्य दरबार
एवं दिखावटी मान मर्यादा का होना आवश्यक है। बलबन ने फारसी रीति-रिवाज
पर आधारित उनके राजाओं के नाम की तरह अपने पौत्रों का नाम कैबाद,
खुसरो एवं क्यूम उसका दरबार ईरानी परम्परा के अन्तर्गत सजाया गया । रखा।
था उसने ईरानी त्यौहार नौरोज प्रथा आरम्भ किया। बलबन ने ईश्वर, शासक तथा
जनता के बीच त्रिपक्षीय सम्बन्धों को राजत्व का आधार
बनाना चाहा। उसने राजा
द्वारा निष्पक्ष एवं कठोर न्याय किये जाने को महत्व दिया और साथ ही कुरान के

    नियमों को शासन का आधार बनाया। बरबन में पाए।
करते हुए अपने द्वारा जारी किये गये सिक्कों पर खलीफा के नाम को अंकित
कराया से खुतबे भी पड़े । अमीर खुसरो ने अपना दरबारी जीवन
तथा उसके  नाम बलबन के पुत्र मुहम्मद के समय से ही शुरू किया।


   1286 ई. में बलबन का बड़ा पुत्र मुहम्मद अचानक एक बड़ी मंगोल सेना
से घिर जाने के कारण युद्ध करते हुए मारा गया। विख्यात कवि अमीर खुसरो
जिसका नाम तिएहिन्द भारत का तौता) था तथा अमीर
हसन देहलवी ने अपना साहित्यिक जीवन शाहजादा मुहम्मद के समय में शुरू किए थे। अपने प्रिय पुत्र
मुहम्मद की मृत्यु के सदमे को न बर्दाश्त कर पाने के कारण 80 वर्ष की अवस्था
में 1286 ई. में बलबन की  मृत्यु हो गई। मृत्यु पूर्व बलबन ने अपने दूसरे पुत्र बुगरा
खां को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने के आशय से बंगाल से वापस बुलाया
किन्तु विलासी बुगरा खां ने बंगाल के आरामपसन्द एवं स्वतंत्र जीवन को अधिक

            पसन्द किया और चुपके से बंगाल वापस चला गया। तदुपरान्त बलबन ने अपने पत्र
महम्मद के पुत्र) कैखुसरो को अपना उत्तराधिकारी चुना। बलबन शरीयत का कट्टर
समर्थक था और वह दिन में 5 बार नमाज पढ़ता था। सल्तान बनने के बाद उसने
शराब तथा भोग विलास को पूर्णतः त्याग दिया। बलबन उलेमाओं का बहत सम्मान
करता था। उसने अपने राजदरबार में अनेक कलाकारों एवं साहित्यकारों को
संरक्षण प्रदान किया। उसके राज्याश्रय में फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर
हसन रहते थे। इनके अतिरिक्त ज्योतिषी एवं चिकित्सक मौलाना हमीददीन
खुसरो एवं अमीर  मौलाना बदरुद्दीन एवं मौलाना हिसामुद्दीन भी
उसके दरबार में रहते थे। बलन के
बारे में के. ए. निजामी का कथन है- बलबन एक उत्तम अभिनेता । था जो
दर्शकों को आधुनिक फिल्मी सितारों की भांति मंत्रमुग्ध रखता था।

                                               बलबन के कथन था।
1. 'राजा का हृदय ईश्वर की कृपा का विशेष कोष है और समस्त मनुष्य
जाति में उसके समान कोई नहीं है।
2. "एक अनुग्रही राजा सदा ईश्वर के संरक्षण के छत्र से रहित रहता है।"
3. " राजाको इसजीवन प्रकार व्यतीत करना चाहिए कि मुसलमान
प्रत्येक शब्द या क्रियाकलाप को मान्यता दे और प्रशंसा करे।
 "जब मैं किसी तुच्छ परिवार के व्यक्ति को देखता हूं तो मेरे शरीर की -
प्रत्येक नाड़ी क्रोध से उत्तेजित हो जाती है।"

                        कैशबाद एवं शम्सुद्दीन क्यूमर्स (1287-1290 ई.)
बलबन अपनी मृत्यु के पूर्व कै खुसरो को  अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया
था। पर दिल्ली फखरुद्दीन मुहम्मद बलबन की मृत्यु के कूटनीति  के कोतवाल ने बाद
के द्वारा कैखुसरो को मुल्तान की सूबेदारी देकर कैकुबाद को 17 या 18 वर्ष की
अवस्था में दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। फखरुद्दीन के दामाद निजामुद्दीन ने अपने
कुचक्र के द्वारा सुल्तान को भोग विलास में लिप्त कर स्वयं सुल्तान के सम्पूर्ण
अधिकार को नाइब' बनकर प्राप्त कर लियानिजामुद्दीन के  प्रभाव से मुक्त होने

      के बाद कैकुबाद ने उसे जहर देकर मरवा दिया।
कुबाद ने गैर तुर्क सरदार जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को अपना सेनापति
बनाया जिसका तुर्क सरदारों पर बुरा प्रभाव पड़ा। बैकुबाद के समय मंगोलों ने तामर
खां  के नेतृत्व में समाना पर आक्रमण किया हालांकि सेना द्वारा उन्हें वापस खदेड़
दिया गया। तुर्क सरदार बदला लेने की बात को सोच ही रहे थे कि कैकुबाद को
लकवा मार गया। प्रशासन के कार्यों में उसे अक्षम  देखकर तुर्क सरदारों ने उसके।
तीन वर्षीय पुत्र शम्सुद्दीन क्यूमर्स को सुल्तान घोषित कर दिया। कालान्तर में
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने उचित अवसर प्राप्त कर शम्सुद्दीन का वधकर दिल्ली।
के तख्त पर स्वयं
अधिकार करके खिलजी वंश की स्थापना की।
next
https://haidriinform.blogspot.com/2018/06/jala-lud-deen-firoz-khilzi-ki-biography.html

Post a Comment

0 Comments